Thursday, June 23, 2016

पाठ्यक्रम और राजनीतिक दल- नवलकिशोर सोनी

राजस्थान की वर्तमान पाठ्य पुस्तकों को लेकर यों तो अब तक मेरे विद्वान साथियों ने काफ़ी कुछ लिखा  हैकुछ ने जेंडर की दृष्टि से तो कुछ ने वैज्ञानिक और इतिहासिक दृष्टि से. हम सभी यह बात भली-भाँति जानते है कि शिक्षाक्र्म और पाठ्यक्रम  के साथ छेड़खानी करना सभी राजनीतिक दलों का प्रमुख एजेंडा होता है. इस मामले में ना भारतीय जनता पार्टी पीछे है और ना ही कॉंग्रेस और ना ही अन्य वामपंथी दल. आप इस बात का उदाहरण सभी राज्यों और उन राज्यों में मौजूद सरकारों की विचारधारा  के साथ वर्तमान पाठ्यक्रम  को तुलना करके देख सकते हैं.
राज मार्गों, सरकारी भवनों इत्यादि के नामकरण अपनी-अपनी राजनीतिक  विचारधारा के समर्थक या प्रतिपादक व्यक्तियों के नाम पर रखना या बदलना राजनीतिक दलों का बहुत पुराना शगल है.
अब सवाल यह है कि क्या इस सब कार्यकलाप को यह कहकर जायज़ ठहराया जा सकता है कि जो भी दल सत्ता में आएगा वो तो शिक्षाक्रम और पाठ्यक्रम से छेड़खानी करेगा ही. और चूँकी सभी दल एसा करते है तो इसमें हैरानी की बात ही क्या है ?
कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि सभी राजनीतिक दल शिक्षाक्रम और पाठ्यक्रम से छेड़खानी करते हैं तो बाकी को भी [ जिनको सत्ता में आने का मौका मिला है यह हक़ होना चाहिए] और यह क्रम यदि इसी तरह चलता रहे तो ज़रा सोचिए हम हमारे समाज और देश को किस दिशा में ले जा रहे होगें ? सवाल यह भी उठता है कि राजनीतिक दल यदि अपनी अपनी विचारधारा के अनुसार शिक्षाक्रम और पाठ्यक्रम से छेड़खानी ना करें तो फिर शिक्षाक्रम और पाठ्यक्रम निर्माण के मूलभूत आधार क्या हो ? और क्या उन आधारों पर सभी राजनीतिक दलों की साझी समझ हो सकती है ? यह भी कि क्या वो आधार मानव समाज और देश-दुनिया के लिए संगत होगें ? यदि हाँ तो किस प्रकारऔर क्या सभी राजनीतिक दल एसे साझे आधारों पर एकमत हो सकेगें ? यह सब सवाल है जिनका जवाब हम निरपेक्ष होकर हमारे भारतीय संविधान में  ढूढ़ना चाहे तो मिल जाएगा.
यदि हम संवैधाननिक मूल्यों को शिक्षाक्रम और पाठ्यक्रम की समीक्षा का आधार बनाएँ तो मेरा दावा है कि कोई भी राज्य और वहाँ का शिक्षाक्रम और पाठ्यक्रम इस मामले में संपूर्ण कसौटी पर खरा नही उतरेगा जोकि हमारे देश और समाज के लिए काफ़ी चिंताजनक स्थिति है.